श्लोक 1: (भगवद्गीता 2.47)
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
अर्थ:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में नहीं। इसलिए कर्म के फल की चिंता मत करो और न ही कर्म न करने में आसक्त हो।
श्लोक 2: (शिव ताण्डव स्तोत्रम्)
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले।
गलेवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्॥
अर्थ:
भगवान शिव की जटाओं से बहता हुआ गंगाजल पवित्रता प्रदान कर रहा है। उनके गले में लहराती हुई विशाल सर्पमाला शोभायमान है।